हम कभी पीछे थे न आज पीछे हैं…
हमारे पास ज्ञान बहुत है, जरूरत है कमिटमेंट की… छत्तीसगढ़ में दिग्विजय कॉलेज एक बहुत अच्छा आटोनामस कालेज है – डॉ. राजीव प्रकाश
शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय में चल रहे अन्तर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस का दूसरा दिन भी अपनी विशिष्ट गति में निर्बाध रहा। आज के आकर्षण- आई. आई. टी. भिलाई के डायरेक्टर, डॉ. राजीव प्रकाश, डॉ. पाज ओटरो फ्यूरटेश -स्पेन, डॉ. चंद्रभान वर्मा- सऊदी अरब, डॉ. अब्राहम वर्गीज- उज्बेकिस्तान, डॉ. साधुचरण मलिक – इंदिरा गांधी जनजाति विश्वविद्यालय, अमरकंटक, डॉ. नरेश कुमार देवांगन, प्रोफेसर नवकांत देव, डॉ. जितेंद्र रामटेके रहे।
तृतीय तकनीकि सत्र के मुख्य वक्ता डॉ. राजीव प्रकाश का स्वागत प्राचार्य डॉ. के. एल. टांडेकर द्वारा किया गया। संयोजक डॉ. सुरेश पटेल ने संरक्षक एवं प्राचार्य महोदय का स्वागत किया। इस अवसर पर डॉ. टांडेकर ने महाविद्यालय के शोध कार्य का प्रारूप प्रस्तुत करते हुए कहा कि इसी तारतम्य में यह कॉन्फ्रेंस चल रहा है। जिसमें देश – विदेश से बड़े-बड़े वैज्ञानिक विद्वान आए हुए हैं, यह महाविद्यालय के लिए गौरव की बात है आपके आगमन से, महाविद्यालय और आईआईटी, भिलाई के सहयोग एवं प्रेरणा से, शोध कार्य को एक नई दिशा प्राप्त होगी। विषय विशेषज्ञ डॉ. राजीव प्रकाश ने कहा कि मैं यहां आकर अत्यंत प्रसन्न हूं। मुझे यह ज्ञात हुआ कि छत्तीसगढ़ में इतना अच्छा स्वशासी महाविद्यालय भी है। ‘‘इंडियन नॉलेज सिस्टम सिरेमिक मटेरियल‘‘ विषय पर बोलते हुए कहा कि हमारे यहां प्राचीन काल से सिरामिक से मटेरियल बनाने की परंपरा थी। आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया द्वारा उत्खनन कार्य के माध्यम से यहां पता चलता है। इससे यह ज्ञात होता है कि हमारा जो नालेज था उसका वैज्ञानिक तरीके के अध्ययन नहीं हो पाया यह दुर्भाग्य की बात है।
मेटल आर्ट, बस्तर आर्ट पर भी उन्होंने प्रकाशन डाला। जिज्ञासु विद्यार्थियों, शोधार्थियों एवं प्राध्यापकों के जिज्ञासाओं का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि परिवर्तन के चलते हमारे लोगों को बहुत अधिक प्रोत्साहन नहीं मिला, हम लोगों में बाजार -भावना नहीं थी इसलिए प्रतियोगिता में पीछे हो गये। अन्यथा ज्ञान में हम पीछे न तब थे न आज है। यह जरूरी है कि परिवर्तन को देखते हुए हम भी चले। डॉ. राजीव प्रकाश को पारंपरिक ‘खुमरी‘ पहना कर एवं स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया गया। इस सत्र में सेमिनार के सहसंयोजक डॉ. हेमंतसाव ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन सुश्री वंदना मिश्रा ने किया। ऑनलाइन मोड में अंतर्राष्ट्रीय रिसोर्स पर्सन डॉ. पाज ओटरो फ्यूरटेश – स्पेन से, डॉ. चंद्रभान वर्मा -सऊदी अरब से जुड़े। आज के तकनीकी सत्रों में 60 ऑनलाइन, 66 ऑफलाइन शोध पत्र वाचन किए गए। तृतीय तकनीकी सत्र एवं चतुर्थ तकनीकी सत्रों में डॉ. शैलेंद्र यादव, डॉ. ए. के. झा, श्री युनुस रजा बेग, डॉ अब्राहम वर्गीज, डॉ. ए.के. श्रीवास्तव, डॉ. संतोष बहादुर एवं डॉ. के. के. साव ने अध्यक्षता की। सत्रो का संचालन डॉ. सोनल मिश्रा, सुश्री वंदना मिश्रा, डॉ. कविता साकुरे, सुश्री इति साव, डॉ. प्रियंका सिंह, श्रीमती रीमा साहू ने किया। विदेशों एवं देश के विभिन्न क्षेत्रों से विद्वतजनों ने ऑनलाइन एवं ऑफलाइन जुड़कर संगोष्ठी को गरिमा प्रदान की।
सांस्कृतिक प्रभारी डॉ. अनीता शंकर के निर्देशन में रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन हुआ। शिव वंदना- कु. आरती अहूजा, योग नृत्य- योग विभाग कामेश- गायन, डॉ. नीलू श्रीवास्तव, डॉ. अरुण चैधरी एवं मुकेश, गगन, योगी तथा साथियों का छत्तीसगढ़ी लोक नृत्य आकर्षण के केंद्र बिंदु थे।