सिंधु सभ्यता भारतीय संस्कृति की गौरवशाली अध्याय – डाॅ. शैलेन्द्र सिंह
शासकीय शिवनाथ विज्ञान महाविद्यालय के इतिहास विभाग में प्राचार्य डाॅ. गन्धेश्वरी सिंह के मार्गदर्शन में व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया। मुख्य वक्ता दिग्विजय महाविद्यालय के इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. शैलेन्द्र सिंह थे। प्रारंभ में डाॅ. निर्मला उमरे द्वारा व्याख्यानमाला के आयोजन पर प्रकाश डाला गया। डाॅ. शैलेन्द्र सिंह ने कहा कि सिंधु सभ्यता भारतीय संस्कृति की प्रारम्भिक बिन्दू है। 1921 में दयाराम साहनी के खोज में यह सिद्ध किया की हमारी सभ्यता एवं संस्कृति हजार वर्ष से अधिक प्राचीन एवं गौरवशाली रही। सिन्धु घाटी के कालक्रम का निर्धारण एक जटिल कार्य था। इसकी लिपि न पढ़ी जाने की वजह से और जटिल हो गया, किंतु रेडियो कार्बन विधि के आधार पर इसे निर्धारित किया गया। इस सभ्यता के प्रमुख नगर हडप्पा, मोहन जोदडो, चन्हूहुदडो, लोथल कालीबंगा थे। इतिहास जानने के लिए नगर, मकान, पत्थर, प्रशाधन सामग्री, कंकाल, बर्तन मुद्राव अािद मूल सामग्री पर भी निर्भर होना पड़ता है। सभ्यता के प्रमुख विशेषताओं में मोहनजोदडो में मिला सार्वजनिक स्थानागार में धार्मिक महत्व रखता है। नगर योजनाबद्ध तरीके से बना था। सड़क के किनारे नालिया जो पक्की इटियों से ढ़की थी। नालियों का गंदा पानी शहर से बाहर निकलता था, नाली बनाने में पत्थर, इट्टो एवं चूनो का प्रयोग किया गया था। विश्व की सभी प्राचीन सभ्यताओं में केवल सिन्धु सभ्यता में पक्की इट्टों का प्रयोग किया गया था। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. फूलसो पटेल द्वारा किया गया। इस अवसर पर डाॅ. नागरत्ना गनवीर, डाॅ. एलिजाबेथ भगत, प्रो, सीमा पंजवानी, प्रो. अनिल चन्द्रवंशी, तथा महाविद्यालय के छात्र/छात्राएं उपस्थित थे।