शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय के इतिहास विभाग में शहीद भगतसिंह, राजगुरु एवं सुखदेव को उनकी शहादत दिवस पर याद किया गया। प्रारंभ में महाविद्यालय के प्राचार्य डाॅ.के.एल. टांडेकर ने कहा कि ये देश हमारा मूल्क हमारा है, ऐसी भावना लेकर अंग्रेजी दासता से मुक्ति पाने के लिए देश के युवा क्रान्तिकारियों ने देश को आजाद करने का संकल्प लिया और अपने प्राणों का न्यौछावर कर देश की आजादी में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। विभागाध्यक्ष डाॅ. शैलेन्द्र सिंह ने कहा कि राजगुरु का पूरा नाम शिवराम हरी राजगुरु था। छोटी उम्र में ही वे वाराणसी विश्वविद्यालय में अध्ययन करने गये थे, इन्होने हिंदू धर्म ग्रंथो का अध्ययन किया। ये चन्द्रशेखर आजाद से काफी प्रभावित थे और उनकी पार्टी हिन्दुस्तान स्पेशलिस्ट रिपब्लिक आर्मी से जुड गये थे। ये अच्छे निशानेबाज थे और साण्डर्स की हत्या में इन्होने भगत सिंह और सुखदेव का साथ दिया था। सुखदेव लाहौर नेशनल कालेज के छात्र रहे थे। लाला लाजपत राय की मौंत का बदला लेने के लिए कैप्टन साण्डर्स हत्या में इन्होने भगतसिंह , राजगुरु का पुरा साथ दिया था। सन् 1929 में जेल में कैदियो के साथ हुए अमानवीय व्यवहार किए जाने के विरोध में व्यापक हड़ताल में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। 23 मार्च को इन्हे फांसी की सजा दी गई। कार्यक्रम का संचालन करते हुए प्रो. हीरेन्द्र बहादुर ठाकुर ने कहा कि भगत सिंह महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। इन्होने चन्द्रशेखर आजाद के साथ मिलकर ब्रिटिश सरकार का मुकाबला किया। इन्होने दिल्ली की केन्द्रीय संसद में बम विस्फोट करके ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खुले विद्रोह का बुलंद किया। बम फेकने के बाद इन्होने भागने से मान किया। 23 मार्च को इन्हे राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी दे दी गई। आभार प्रदर्शन प्रो. हेमलता साहू द्वारा किया गया। इस अवसर पर विभाग के छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।