शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय के इतिहास विभाग द्वारा शहीद वीर नारायण सिंह की जयंती मनाई गई। ।कार्यक्रम के आरंभ में शहीद वीर नारायण सिंह के तेलचित्रों पर माल्यार्पण किया गया। प्राचार्य डॉ. के. एल. टांडेकर ने अपने उद्बोधन में कहा कि छत्तीसगढ़ जैसे शांति प्रिय क्षेत्र में अंग्रेजों की नीतियों का परिणाम था कि सोनाखान के जमींदार नारायण सिंह को विद्रोह करना पड़ा अपने क्षेत्र के लोगों को भूख से बचाने के लिए उन्होंने विद्रोह किया था अपनी जान की परवाह ना करते हुए उन्होंने अंग्रेजों से लोहा लिया उनकी शहादत हमेशा याद रहेगी। विभागाध्यक्ष डॉ. शैलेंद्र सिंह ने कहा कि 1857 के विद्रोह के समय किसानो की दयनीय स्थिति, अकाल की विकरालता ने वीर नारायण सिंह के विद्रोह करने के लिए प्रेरित किया । अंग्रेजो के षयंत्र करके नारायण सिंह को जेल में डाल दिया था, वहां से जेल से निकलने में सफल रहे थे ।बाद में अंग्रेजों ने 500 सैनिकों की टुकड़ी भेज कर उन्हें गिरफ्तार किया और 10 दिसंबर1857 को रायपुर के जय स्तंभ चैक में फांसी दे दी थी। छत्तीसगढ़ के भोली-भाली जनता के मन में दहशत पैदा करने का प्रयास किया था। नारायण की शहादत हमेशा यादगार रहेगी। युवाओं को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। कार्यक्रम का संचालन करते हुए प्रोफेसर वीरेंद्र बहादुर ठाकुर ने कहा कि आज का दिन हमेशा इतिहास में एक निर्भीक जमींदारकी शहादत के लिए याद की जाएगी, छत्तीसगढ़ के प्रथम शहीद होने का गौरव उन्हें प्राप्त है। इस अवसर पर प्रोफेसर हेमलता साहू प्रोफेसर, हेमंत नंदागोरी तथा एम.ए. इतिहास के छात्र-छात्राएं उपस्थित